श्री गणपति जी की आरती
श्री गणपति भज प्रगट पार्वतीअंक विराजत अविनासी।
ब्रह्मा विष्णु सिवादि सकल सुर
करत आरती उल्लासी॥
त्रिशूलधर को भाग्य मानिकें
सब जुरि आये कैलासी।
करत ध्यान, गन्धर्व गान-रत,
पुष्पन की हो वर्षा-सी॥
धनि भवानी व्रत साधि लह्यो जिन
पुत्र परम गोलोकासी।
अचल अनादि अखंड परात्पर
भक्तहेतु भव-परकासी॥
विद्या-बुद्धि निधान गुनाकर
विघ्नविनासन दुखनासी।
तुष्टि पुष्टि सुभ लाभ लक्ष्मी सँग
रिद्धि सिद्धि-सी हैं दासी॥
सब कारज जग होत सिद्ध सुभ
द्वादस नाम कहे छासी।
कामधेनु चिंतामनि सुरतरु
चार पदारथ देतासी॥
गज-आनन सुभ सदन रदन इक
सुंढि ढूंढि पुर पूजा-सी।
चार भुजा मोदक-करतल सजि
अंकुस धारत फरसा-सी॥
ब्याल सूत्र त्रयनेत्र भाल ससि
उन्दुरवाहन सुखरासी।
जिनके सुमिरन सेवन करते
टूट जात जम की फाँसी॥
कृष्णपाल धरि ध्यान निरन्तर
मन लगाय जो कोई गासी।
दूर करैं भवकी बाधा प्रभु
मुक्ति जन्म निजपद पासी॥